Saturday, 21 July 2012

अकेलापन

क्या तुम्हे पता है कि अकेलापन क्या होता है?
जब अपनी ही रूह़ पर उभरे छालों से
दर्द सा रिसता है।
मौत के इंतजार में
इंसान हर पल मरता है।
खुद की ही चीखें
जब गुँजती हैं कानों में।
और चाँद का किरकिरापन
चुभने लगता है आँखों मे।
ऐसा होता है अकेलापन।।

जब तन्हाई होती है चारों ओर,
खामोशी के आगोश में सुनता है तो कुछ
बस अपनी ही कराहों का शोर।
जब नफ़रत हो जाती है
भगवान से।
और ङर लगने लगता है
अपने ही नाम से।
ऐसा होता है अकेलापन।।

तुम सोचते होगे कि- मुझे कैसे पता ?
मैने ये अकेलापन सिर्फ महसूस ही नही किया
बल्कि जिया है।
किसी के दिल का ही नहीं, अपनी ही आत्मा का खून भी
अपने ही हाथों से किय़ा है।

तुमने देखा है ना आसमान में जलते सूरज को ?
जिसके जलते हुए सीने की तपीश
हमें धरती तक महसूस होती है।
शायद़ वो भी अकेला है मेरी ही तरहं..
........................... बहुत अकेला।
और ऐसी ही होती है अकेलेपन की जल़न।।

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